लिख नहीं पाती है कलम आजकल
यादों की डायरी खोली थी मैंने
खाली है मुस्कुराहटों की दवात और
ख्वाबों के पन्ने पे अश्कों की स्याही है
बारिश की बूंदों सा वो खिलखिलाता लम्हा
बिना भिगोये सामने से गुजर गया और
भरना चाहता था जिसको अपने दवात में
कलम पन्नो में भी दर्ज नहीं कर पायी है
भींगी हुई डायरी में लिखने की कोशिश की थी
बहुत खोज मगर पेंदे में स्याही के छींटे भी न थे
कैसे लिखू ऐसे दास्ताँ का अंजाम
न पन्नों का वजूद है न दवात में रोशनाई है
न स्याही की न पन्नो की मोहताज होती है कहानियां
लिख नहीं पाती है कलम आजकल
मगर गौर से देखो डायरी के कोरे पन्नो में
कहानी बढ़ गयी है ,स्याह नहीं है सिर्फ परछाई है