Sunday, July 31, 2016

Likh nahin pati hai kalam aajkal

लिख नहीं पाती है कलम आजकल 
यादों की डायरी खोली थी मैंने
खाली है मुस्कुराहटों की दवात और 
ख्वाबों के पन्ने पे अश्कों की  स्याही  है 

बारिश की बूंदों सा वो खिलखिलाता लम्हा
बिना भिगोये सामने से गुजर गया और 
भरना चाहता था जिसको अपने दवात में 
कलम पन्नो में भी दर्ज  नहीं कर पायी है 

भींगी हुई  डायरी में लिखने की कोशिश की थी 
बहुत खोज मगर पेंदे में स्याही के छींटे भी न थे 
कैसे लिखू ऐसे दास्ताँ का अंजाम 
न पन्नों का वजूद है न दवात  में रोशनाई है 

न स्याही की न पन्नो की मोहताज होती है कहानियां
लिख नहीं पाती  है कलम आजकल 
मगर गौर से देखो डायरी के कोरे पन्नो में 
कहानी बढ़ गयी है ,स्याह नहीं है सिर्फ परछाई है 



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