" अरे नहीं री , सुना है लोग सड़कों पे आ गए हैं," " अरे क्या बात करती है तू भी | अब जब रहने को छत ही नहीं है, तो सड़कों पे तो आयेंगे ही, हमे क्या हम कौन सा सड़कों पे रहते हैं | और जब निकलते हैं तब क लिए सिक्युरिटी है न | और तुझे तो सेकुरिटी की भी जरुरत नहीं , क्यूँ ? तू तो खुद ही सिक्यूरिटी है | हा हा हा "
खाकी टोपी शर्मा कर बोली " बहुत कांफिडेंट है तू तो | " " कहे न रहूँ? इस देश की पूरी हिस्टरी देख ले | सब साले चोर हैं , बस हम बड़े चोर हैं | कानून आने से का होगा , कानून तो ये भी है रोड पर मूतना नहीं है | कौनो फोल्लो करता है का? मुन्नी ये जुगाड़ का देश है , यहाँ हर चीज का जुगाड़ है , हर चीज की कीमत है | तेरे नीचे जो विलायती दारू की बोतल रखी है वो तेरी कीमत, मेरे अन्दर जो एक पेटी का चेक वो मेरी कीमत "
"और हमरा , हमरा की कीमत है मालकिन " जमीं पे पड़ा माली का गमछा चिल्लाया | " साले चुप क हमारी बातें सुन रहा है |" खाकी टोपी चीखी " दो सोंटा लगायेंगे तो होश ठिकाने आ जायेगा | बड़ा लोग क बात में टोकता है | तोहरी बहिन की ..." "रहने दे रे ! और तू साले भाग यहाँ से .."
"क्या री ? जाने दिया उसको "
" बस यही तो अंतर है हममे , इसलिए तू खाकी है और मैं खादी | ये साला गमछा जब तक मिटटी में पड़ा रहे, तब तक सही है | जिस दिन
ये मादर फंदा बन गया उस दिन तू क्या , मैं क्या और ये क्या सब मिटटी हैं | "
खाकी मुस्कुरा कर बोली " क्यूँ रे ! कानून से डर नहीं लगता , गमछे से लगता है ?"
गाँधी टोपी उसकी ओर देखी और बोली " मुन्नी ! मैं भी कभी गमछा ही थी |"
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